सर्द रातों में सताती है जुदाई तेरी
आग बुझती नहीं सीने में लगाई तेरी
तू तो कहता था बिछड़ के सुकून पा लेंगे
फिर क्यों रोती है मेरे दर पे तन्हाई तेरी…
सर्द रातों में सताती है जुदाई तेरी
आग बुझती नहीं सीने में लगाई तेरी
तू तो कहता था बिछड़ के सुकून पा लेंगे
फिर क्यों रोती है मेरे दर पे तन्हाई तेरी…